मंगलवार, 23 मई 2017

आर्यसमाज से १० प्रश्न



(प्र.१) ईश्वर ने ऋषियों को किस तरह से वेद सुनाऐ ?
अगर कहो कि वेदो का ज्ञान उनके दिलो दिमाग मे डाला गया तो जरा सा ये बताने का कष्ट करे कि ज्ञान किस तरह से ईश्वर ने ऋषियों को दिया  ? अर्थात वह किस तरह का ट्रांसमीटर था , क्या कोई हरी (Green) बद्दी थी जो उनके सिर मै चल जाया करती थी  ? 

(२)मरने के  बाद आत्मा कुछ ही देर मै शरीर धारण करती है !

यह बृहदारण्यक- उपनिषद् ने कहा- देखियें ,
तद्यथा तृणजलायुका तृणस्यान्तं गत्वाऽन्यमाक्रममाक्रम्यात्मानम्

उपसँ्हरत्येवमेवायमात्मेदं शरीरं निहत्याऽविद्यां गमयित्वाऽन्यमाक्रममाक्रम्य् आत्मानमुपसंहरति।।

– बृ. ४.४.३

जैसे तृण जलायुका (यह कोई खास किडा हे आर्य समाजीयों का) तिनके के आखरी सिरे पर पहुँच कर, दूसरे तिनके को सहारे के लिए पकड़ लेता है अथवा पकड़ कर अपने आपको खींच लेता है, इसी तरह यह आत्मा इस शरीररूपी तिनके को दुर कर दुसरे शरीर रुपी तिनके का सहारा लेकर अपने आपको खिंच लेती हे !

उपनिषद् के मुताबीक एक शरीर से दुसरे शरीर मे जाने के लिये आत्मा को बस कुछ ही देर लगती हे !

(प्र. २)  अब प्रश्न यें हे कि आपके स्वामी दयानन्द साहेब अब तक क्यूं नही आऐं ? साहेब तो मरते मरते कहकर गये थे कि मै दोबारा आउुंगा , और उपनिषद् ने भी समय बतादिया है ! कृपा कर समाधान करीयें ,

> आर्यो के स्वामी साहेब सत्यार्थ
प्रकाष की भुमिका मे लिखते हे कि ईस ग्रन्थ मे ऐसी कोई बात नही रखी है, और न किसी का मन दुखाना !
आईये अब देखते हे कि स्वामी जी ने किन किन लोगों का मन दुखाया है ,

स्वामी साहेब लिखते हे कि जिस कन्या के शरीर पर बड़े बड़े लोम अथवा बवासीर , क्षयी , दम , खासी , अमाशय , मिरगी , .... कुलो की कन्या वा वर के साथ विवाह होना न चाहिये ! (स. समु. ४ पेज ५३)
(प्र.३ ) अब कहिये जब कोई लड़का या लड़की जिसमे यह बिमारी हो वह अगर यह वाक्य पड़ेंगे तो क्या उनका मन नही दुखेगा ?

आगे और भी स्वामी जी लिखते है ,
 पेज न०. १५२ पर ,  हब्शी लोगो को भयंकर व राक्षस बोला हे ,
(प्र.४) समाजीयो  यह वाक्य जब हब्शी लोग  पड़ेंगे तो  उनका मन दुखेगा या नही ?

अब जेनियो के बारे मे भी देखियें ,

दयानन्द जी ने जेनियोे को एक वेश्या समान समजा है , (समु.१२पेज न०.३०२)
(प्र.५ ) अब बताईयें कि क्या जेन मत वाले दयान.. जी के वाक्य देखकर प्रसन्न होंगे ? क्या उनका मन  नही दुखेगा  ?

ये तो होगऐं  दयानन्द जी की भुमिका पर उठने वाले प्रश्न , अब इसी मेसे कुछ और भी प्रश्न सामने आते है ,
(प्र.६) अगर किसी वर या कन्या के विवाह के बाद ये जो बिमारीयो के बारे मे बताया गया है ये बिमारी उनके भीतर आजायें तो वह क्या करे ? इसके बारे मे तो स्वामी साहेब ने  कुछ नही बताया ?

आर्यसमाज का कहना है कि आर्यसमाज किसी मनुष्य मै उच निच  नही समझता,
(प्र.७) तो अब बताइयें कि हब्शी लोगो को भयंकर व राक्षस किस आधार पर कहा ? अगर कहो कि उनका चहरा काला व नाक बड़ी हे तो यह स्वामी जी की बात उच निच समान ही है ! हद होती हे दोगलेपन की ,

(८) जेसे वेश्या विना अपने के दुसरी की स्तुति नहि करती वेसे ही यह बात भी दिखती है , ( सत्यार्थ समु.१२ - पेज३०२)
यह वाक्य दयानन्द साहेब ने जेनियो के लिये लिखे है , परन्तु अब यह वाक्य आज की सत्यार्थ प्रकाश मे नही दिखेंगे !

(प्र.८) समाजियो यह वाक्य को क्यु छुपाना चाहते हो ?

(९) डाढ़ी मूँछ और शिर के बाल सदा मुंडवाते रहना चाहिये अर्थात पुन : कभी न रखना और जो शीतप्रधान देश हो तो कामचार है, चाहै जितने केश रक्खे और अति उष्ण देश हो तो सब शिखा सहित छेदन करा देना चाहिये क्योंकि शिर मे बाल रहने से उष्णता अधिक होती है और उसमे बुध्दि कम हो जाती है । डाढ़ी मुँछ रखने से भोजन पान अच्छे प्रकार नहीं होता और उच्छिष्ट भी बालों में रह जाता है ! ( सत्यार्थ . समु . १० )

(९) दया जी कहते हे कि जो शीतप्रधान देश हो तो कामचार है ,चाहै जितने केश रखे ।
और निचे लिखते हे कि डाढ़ी मुँछ रखने से भोजन पान अच्छे प्रकार से नही होता और उचछिष्ट भी बालों में रह जाता है ।

(प्र०.९) क्या शीतप्रधान वाले देश के मनुष्यों का भोजन पान अच्छे प्रकार हो जायेगा ? और क्या उच्छिष्ट
 बालों मे न फसेगा ?

वाह रे स्वामी साहेब का दोगलापन ,

(१०) दया जी कहते है कि सिर  के बाल रखने से बुध्दि कम हो जाती है .

(प्र०.१०) औरतो के बाल बहुत लम्बे लम्बे होते है क्या उनकी बुध्दि कम होती हे ?

दयानन्द जी की हर एक बात पर प्रश्न उठता है परन्तु हमने सिर्फ १० प्रश्न ही किये क्योंकि यहि ठेकेदारो के लियें काफी हद तक है !
               

( अकिल अन्सारी )        

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